PARITOSH MISHRA

किसान, ज़मींदार और राज्य — मुगल साम्राज्य में कृषि समाज (16वीं से 17वीं शताब्दी) (Peasants, Zamindars and the State — Agrarian Society and the Mughal Empire) [sixteenth to seventeenth century]

यह अध्याय भारत के मुगल काल के दौरान ग्रामीण जीवन, कृषि प्रणाली, ज़मींदारों की भूमिका और राज्य की राजस्व नीतियों को समझने में मदद करता है। 16वीं से 17वीं शताब्दी के बीच भारत की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी और मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थी। किसानों की स्थिति अस्थिर थी—वे राज्य को राजस्व देते थे, ज़मींदारों के अधीन होते थे और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी परेशान रहते थे।

मुगल राज्य ने एक सुव्यवस्थित राजस्व प्रणाली विकसित की, जिसे अकबर के शासनकाल में विशेष रूप से ‘ज़ब्ती प्रणाली’ के रूप में जाना गया। इस प्रणाली के तहत भूमि की माप की जाती थी और औसत उपज के आधार पर कर तय किया जाता था। ‘पट्टा’ और ‘कबूलियत’ दस्तावेज़ों के माध्यम से किसानों और राज्य के बीच अनुबंध तय किए जाते थे। यह प्रणाली किसानों के लिए स्थायित्व लाने का प्रयास थी, लेकिन कई बार यह उनके ऊपर आर्थिक दबाव भी बढ़ाती थी।

ज़मींदार, जो भूमि के मालिक नहीं होते हुए भी कर वसूलते थे, ग्रामीण समाज में बहुत शक्तिशाली हो गए थे। वे राजस्व के संग्रहकर्ता होने के साथ-साथ समाज में अपनी सामाजिक हैसियत का उपयोग करते थे। कई बार ज़मींदार विद्रोह भी करते थे, खासकर तब जब राज्य उनकी शक्तियों को सीमित करता था।

‘आइन-ए-अकबरी’, जो अबुल फज़ल द्वारा लिखा गया था, मुगल काल के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन का महत्वपूर्ण स्रोत है। इस दस्तावेज़ में कृषि उत्पादन, राजस्व व्यवस्था, किसान और ज़मींदारों की स्थिति, भूमि की माप, और राज्य की कार्यप्रणाली की विस्तृत जानकारी मिलती है।

इस प्रकार, यह अध्याय यह समझने में सहायता करता है कि कैसे राज्य, ज़मींदार और किसान – ये तीनों आपस में जुड़े हुए थे, और किस तरह मुगल शासन के अंतर्गत भारतीय कृषि समाज का ढाँचा तैयार हुआ था।

सारांश (Summary)

1. ग्रामीण समाज का महत्त्वपूर्ण स्थान

  • भारत की 16वीं-17वीं शताब्दी की जनसंख्या का अधिकांश भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता था।

  • इन ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि ही जीवन का मुख्य आधार थी।

  • गाँवों का समाज जाति, पेशा, भूमि के स्वामित्व और सामाजिक हैसियत पर आधारित होता था।

2. कृषक वर्ग की स्थिति

  • किसान (रैयत) भूमि की जुताई कर अन्न उपजाते थे और राज्य को कर (लगान) अदा करते थे।

  • किसान दो प्रकार के होते थे:

    1. खुद काश्तकार (स्वयं भूमि जोतने वाले)

    2. बटाईदार या मजदूरी करने वाले किसान

  • उनकी स्थिति असुरक्षित थी क्योंकि प्राकृतिक आपदाएं, अत्यधिक कर, ज़मींदारों का अत्याचार और महाजनों का कर्ज उन्हें पीड़ित करता था।

3. राज्य की राजस्व प्रणाली

  • मुगल शासन का सबसे बड़ा राजस्व स्रोत कृषि कर था।

  • अकबर के समय में टोडरमल द्वारा ज़ब्ती प्रणाली लागू की गई:

    • भूमि की माप की जाती थी।

    • औसत उपज और दाम तय कर कर निर्धारित किया जाता था।

    • कर नकद में लिया जाता था।

  • किसानों को पट्टा (Patta) और कबूलियत (Kabuliat) दिए जाते थे, जिसमें कर और भूमि की जानकारी होती थी।

4. ज़मींदारों की भूमिका

  • ज़मींदार वे लोग थे जो भूमि के एक बड़े हिस्से पर अधिकार रखते थे और राज्य के लिए कर एकत्र करते थे।

  • वे गाँव के सामाजिक और राजनीतिक नेता होते थे।

  • राज्य उन्हें कर संग्रहण का अधिकार देकर जागीरें देता था।

  • कुछ ज़मींदार वंशानुगत होते थे और समय-समय पर राज्य से विद्रोह भी करते थे।

5. राज्य और ज़मींदार के संबंध

  • राज्य के लिए ज़मींदार महत्वपूर्ण होते थे क्योंकि वे कर संग्रहण में सहायता करते थे।

  • बदले में ज़मींदारों को कुछ भूमि पर नियंत्रण और सामाजिक सम्मान मिलता था।

  • परंतु जब ज़मींदार राज्य से असंतुष्ट होते, तब वे विद्रोह करते, जिससे राज्य को नियंत्रण के लिए सैनिक कार्रवाई करनी पड़ती थी।

6. ‘आइन-ए-अकबरी’ का योगदान

  • अबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ में मुगल प्रशासन, भूमि व्यवस्था, कृषि उत्पादों, उपज के प्रकार, कर दरों और किसानों की स्थिति का विस्तार से वर्णन है।

  • यह ग्रंथ मुगल काल के आर्थिक और सामाजिक जीवन का विश्वसनीय स्रोत है।

7. ग्रामीण अर्थव्यवस्था और बाज़ार संबंध

  • किसानों द्वारा उत्पादित फसलों का कुछ भाग स्थानीय बाज़ार में बेचा जाता था।

  • कृषि उत्पादन जैसे – गेहूं, चावल, गन्ना, कपास आदि, व्यापार के लिए उपयोग में आते थे।

  • व्यापारिक मार्गों से ये उत्पाद शहरों, बंदरगाहों और विदेशी व्यापार के लिए भेजे जाते थे।

8. किसानों के आंदोलन और संघर्ष

  • जब कर अधिक हो जाता या प्राकृतिक आपदा आती, तब किसान विद्रोह करते थे।

  • कई बार किसानों ने ज़मींदारों के अत्याचारों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया।

  • इन संघर्षों से राज्य को कृषि व्यवस्था में बदलाव करने की ज़रूरत महसूस हुई।

9. भूमि का वर्गीकरण

  • भूमि को उपजाऊता, सिंचाई, और माप के आधार पर वर्गीकृत किया जाता था।

  • भूमि का रजिस्ट्रेशन राज्य के पास होता था और उसी के अनुसार कर तय होता था।

10. समाज में विविधता और जटिलता

  • ग्रामीण समाज में जातीय और पेशागत विविधता थी – ब्राह्मण, राजपूत, शूद्र, जाट, गुर्जर, आदि।

  • कारीगर, लोहार, बढ़ई, बुनकर आदि गाँवों की आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते थे।

  • सामाजिक ढाँचा भी कर और भूमि स्वामित्व से प्रभावित था।

11. कृषि के साथ अन्य गतिविधियाँ

  • कृषि के साथ पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी, शिल्पकला आदि गतिविधियाँ भी ग्रामीण जीवन का हिस्सा थीं।

  • इनसे अतिरिक्त आय होती थी और स्थानीय व्यापार को बल मिलता था।

12. राज्य की निगरानी और लेखा-जोखा

  • राजस्व वसूली का विस्तृत लेखा राज्य के पास होता था।

  • लेखपाल (कानूनगो), पटवारी और मुहस्सिल जैसी भूमिकाएं प्रशासन के अधीन कार्य करती थीं।

  • किसानों और ज़मींदारों की गतिविधियों पर राज्य की निरंतर निगरानी होती थी।

16वीं और 17वीं शताब्दी में भारत की अधिकांश आबादी गाँवों में रहती थी और उनकी जीविका कृषि पर आधारित थी। मुगल साम्राज्य के अधीन, भूमि पर राज्य का नियंत्रण और कर संग्रह की एक व्यापक प्रणाली थी। किसान उत्पादन का केंद्र थे, जबकि ज़मींदार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली वर्ग थे। इस काल में राजस्व संग्रहण प्रणाली, विशेष रूप से अकबर की ‘ज़ब्ती व्यवस्था’, ने राज्य और समाज के संबंधों को परिभाषित किया। ‘आइन-ए-अकबरी’ जैसे स्रोत इस व्यवस्था की जानकारी देते हैं। कृषि उत्पादों का व्यापार, ग्रामीण समाज की विविधता, किसानों की समस्याएं और आंदोलनों पर भी इस अध्याय में प्रकाश डाला गया है।

शब्दार्थ (Word Meaning)

अंग्रेजी / फ़ारसी शब्दहिन्दी अर्थविवरण / उपयोग
Raiyat (रैयत)किसानजो भूमि जोतकर खेती करता है; राज्य को कर देता है।
Zamindar (ज़मींदार)भूमि का मालिक / कर वसूलने वालाराज्य की ओर से कर संग्रह करने वाला; अक्सर गाँवों का प्रभावशाली व्यक्ति।
Revenue (रेवेन्यू)राजस्व / लगानराज्य द्वारा कृषकों से लिया गया कर।
Jagir (जागीर)भूमि अनुदानज़मींदारों को दी जाने वाली भूमि, बदले में वे सेना या सेवा प्रदान करते थे।
Iqtadar (इक़्तादार)भूमि पर नियुक्त अधिकारीपहले दिल्ली सल्तनत में, बाद में मुगल काल में इक़्ता पर नियंत्रण रखने वाले अधिकारी।
Ain-i-Akbari (आइन-ए-अकबरी)अकबरकालीन प्रशासनिक ग्रंथअबुल फ़ज़ल द्वारा लिखा गया मुगल प्रशासन का वर्णनात्मक ग्रंथ।
Patta (पट्टा)भूमि स्वीकृति पत्रकृषक को दी गई भूमि की आधिकारिक जानकारी का दस्तावेज़।
Kabuliat (क़बूलियत)स्वीकृति पत्रकिसान द्वारा राज्य की शर्तों को स्वीकारने का लिखित प्रमाण।
Kharif Crops (खरीफ फसलें)वर्षा ऋतु की फसलेंजैसे – धान, मक्का, बाजरा आदि।
Rabi Crops (रबी फसलें)जाड़े की फसलेंजैसे – गेहूं, चना, सरसों आदि।
Zabt System (ज़ब्ती प्रणाली)भूमि मापन और कर निर्धारण की प्रणालीटोडरमल द्वारा बनाई गई, उपज और दाम के आधार पर कर तय होता था।
Muqaddam (मुखिया़)ग्राम प्रधानगाँव का प्रमुख, प्रशासन और कर में सहयोगी।
Peshkash (पेशकश)उपहार / कर के अतिरिक्त भेंटज़मींदारों द्वारा राज्य को दी जाने वाली अतिरिक्त राशि।
Malguzar (मालगुज़ार)करदाताभूमि पर कर अदा करने वाला व्यक्ति या समूह।
Mashina (मशीन)यंत्रउस काल में बैलगाड़ी, नहर, हल आदि को भी कभी-कभी मशीन की संज्ञा दी जाती थी।
Iqta System (इक़्ता प्रणाली)सामंतवाद आधारित कर प्रणालीभूमि के बदले सैन्य सेवा देने की पुरानी प्रणाली।
Jins-i-Kamil (जिन्स-ए-कामिल)सर्वोत्तम फसलेंजिनकी गुणवत्ता, मूल्य और मांग अधिक होती थी – जैसे गेहूं, चावल।
Batai (बटाई)उपज का बँटवाराकिसान और ज़मींदार के बीच उपज का हिस्सा बाँटना।
Amin (आमिन)कर निरीक्षक अधिकारीभूमि मापन, फसल मूल्यांकन और कर निर्धारण करता था।
Sheikh / Sayyid / Pathan / Rajput / Bhumiharजातीय समुदायज़मींदारी, सैन्य और प्रशासनिक पदों पर पाए जाने वाले जातीय वर्ग।

माइंड मैप” (Mind Map)

किसान, ज़मींदार और राज्य
किसान, ज़मींदार और राज्य

टाइमलाइन (Timeline)

वर्ष / कालखंडप्रमुख घटना / व्यवस्थाविवरण
1526बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापनापानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहीम लोदी को हराकर मुगल सत्ता की नींव रखी गई।
1540–1555शेरशाह सूरी का शासनभूमि मापन प्रणाली और ‘पट्टा-कबूलियत’ दस्तावेज़ की शुरुआत। ज़ब्ती प्रणाली का प्रारंभिक रूप।
1556अकबर का शासन प्रारंभ13 वर्ष की उम्र में अकबर ने गद्दी संभाली; प्रशासनिक सुधार शुरू हुए।
1570राजस्व सुधारों की योजनाअकबर के मंत्री टोडरमल ने भूमि मापन पर आधारित ज़ब्ती प्रणाली विकसित की।
1580दहसाला प्रणाली की शुरुआतटोडरमल द्वारा बनाई गई प्रणाली जिसमें औसत उपज और मूल्य पर कर तय किया गया।
1590‘पट्टा’ और ‘कबूलियत’ प्रथा प्रचलितकिसानों को भूमि के अधिकार के पत्र (पट्टा) दिए जाने लगे और उनसे कर शर्तों की लिखित सहमति (कबूलियत) ली जाने लगी।
1598ज़मींदारी की भूमिका स्पष्टज़मींदारों की कर वसूली और प्रशासनिक भूमिकाएं सुदृढ़ हुईं; वे राज्य के प्रति उत्तरदायी बनाए गए।
1599–1602अबुल फज़ल द्वारा ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचनाइस ग्रंथ में मुगल प्रशासन, कृषि, कर प्रणाली, फसलों और ज़मींदारों का विस्तृत वर्णन है।
1605अकबर की मृत्यु और जहाँगीर का शासन प्रारंभअकबर की प्रशासनिक नीतियाँ जारी रहीं; रैयत और ज़मींदार संबंधों पर नियंत्रण बना रहा।
1628शाहजहाँ का शासन प्रारंभराजस्व प्रणाली और भूमि माप प्रणाली को और व्यवस्थित किया गया।
1658औरंगज़ेब का शासन प्रारंभधार्मिक कट्टरता के बावजूद राजस्व संग्रह की प्रणाली जारी रही। अनेक जागीरें दी गईं; सामंती कर प्रणाली को बल मिला।
1707औरंगज़ेब की मृत्युमुगल साम्राज्य का धीरे-धीरे पतन शुरू; ज़मींदारों की स्वायत्तता बढ़ी और कृषक आंदोलन प्रारंभ हुए।

मैप वर्क (Map Work)

नीचे दिए गए स्थानों, क्षेत्रों और नदियों को भारत के ऐतिहासिक नक्शे पर दिखाते हुए पढ़ाएं :-

📌 1. प्रमुख कृषि क्षेत्र (Agricultural Regions)

क्षेत्रविवरण
गंगा घाटी (Ganga Valley)मुगलों के अधीन सबसे उपजाऊ क्षेत्र, मुख्य अनाज उत्पादन क्षेत्र।
दोआब (Doab)गंगा और यमुना के बीच का क्षेत्र – विशेषकर गेहूं और गन्ने की खेती के लिए प्रसिद्ध।
पंजाब (Punjab)सिंचाई और कृषि उत्पादन में अग्रणी; प्रमुख ज़मींदार वर्ग यहीं से जुड़े थे।
मालवा (Malwa)कपास, बाजरा, गन्ने की खेती; ज़ब्ती प्रणाली का प्रयोग यहाँ भी हुआ।
गुजरात (Gujarat)रबी फसलें; समुद्री व्यापार से भी जुड़ा हुआ।

🌊 2. प्रमुख नदियाँ (Major Rivers)

नदीमहत्व
गंगागंगा घाटी कृषि और आबादी का केंद्र रही है।
यमुनादोआब क्षेत्र की प्रमुख नदी, सिंचाई और उपज में योगदान।
गोदावरीदक्षिण भारत में कृषि हेतु प्रमुख नदी।
नर्मदामालवा और मध्य भारत के क्षेत्र में सिंचाई स्रोत।
सिंधुपंजाब और सिंध क्षेत्र में कृषि का आधार।

🏰 3. प्रमुख ज़मींदार और जागीरदार क्षेत्रों के उदाहरण

क्षेत्रजातीय / ज़मींदारी वर्ग
अवध (उत्तर प्रदेश)राजपूत ज़मींदार
बिहारभूमिहार और ब्राह्मण ज़मींदार
बंगालपठान और मुस्लिम ज़मींदार
मध्य भारतमराठा और राजपूत जागीरदार
राजस्थानराठौर और अन्य राजपूत वंशज

📚 4. महत्वपूर्ण प्रशासनिक/ऐतिहासिक स्थान

स्थानविशेषता
दिल्लीमुगल राजधानी, प्रशासन का केंद्र
आगराअकबर द्वारा स्थापित प्रशासनिक केंद्र
लाहौरपंजाब का प्रमुख प्रशासनिक शहर
फतेहपुर सीकरीअकबर का प्रमुख शासकीय स्थान, जहाँ राजस्व सुधारों की योजनाएँ बनीं
इलाहाबादप्रशासनिक और धार्मिक महत्व का स्थान

📌 शिक्षण विधि सुझाव (Teaching Method Tip)

 

  • उपर्युक्त क्षेत्रों को रंगों से चिन्हित करें:

    • कृषि क्षेत्र – हरा रंग

    • नदियाँ – नीला रंग

    • प्रशासनिक स्थान – लाल बिंदु

    • ज़मींदारी क्षेत्र – पीले घेरे

  • विद्यार्थियों को स्वयं नक्शे पर क्षेत्र पहचानने के लिए प्रेरित करें।

मैप प्रैक्टिस (Map Practice)

उद्देश्य: छात्रों को पाठ में पढ़ी गई भौगोलिक जानकारी को याद कर पाना, समझना और पहचान सकना।

 गतिविधियाँ :-

🔹 नक्शे में निम्नलिखित कृषि क्षेत्रों को पहचानिए और रंग भरिए :-
  1. गंगा-सिंधु मैदान (उत्तर भारत) – गेहूं, चावल

  2. बंगाल का मैदान – धान, गन्ना

  3. कावेरी डेल्टा (दक्षिण भारत) – चावल

  4. मालवा और गुजरात – कपास, मसाले

  5. दक्कन क्षेत्र – ज्वार, बाजरा

👉 निर्देश: उपरोक्त क्षेत्रों को अलग-अलग रंगों में दर्शाएँ और फसल के नाम भी लिखें।

🔹  निम्नलिखित मुग़ल सूबों को नक्शे में चिह्नित करें और उनकी राजधानी लिखें :-
  1. दिल्ली

  2. आगरा

  3. लाहौर

  4. बंगाल

  5. गुजरात

  6. दक्कन

👉 निर्देश: हर सूबे पर ★ प्रतीक लगाएँ और उसके पास राजधानी का नाम लिखें।

🔹  इन ज़मींदारी और जागीरी क्षेत्रों को पहचानें और ‘Z’ या ‘J’ से चिह्नित करें :-
  • बुंदेलखंड

  • बिहार

  • राजस्थान

  • अवध

  • मालवा

👉 निर्देश:

  • Z = ज़मींदारी

  • J = जागीरी

  • क्षेत्र के पास छोटे अक्षरों में Z या J लिखें।

🔹  नदियों को पहचानें और उन्हें नीले रंग में दर्शाएँ :-
  1. गंगा

  2. यमुना

  3. गोदावरी

  4. कृष्णा

  5. कावेरी

👉 निर्देश: नदियों की दिशा के अनुसार तीर (arrow) बनाकर उनके प्रवाह को दर्शाएँ।

🔹  व्यापार मार्गों को रेखांकित करें और वस्तुएं लिखें :-
  1. बंगाल से दिल्ली – चावल, गन्ना

  2. गुजरात से आगरा – कपड़ा, मसाले

  3. दक्कन से उत्तर भारत – कपास, अनाज

👉 निर्देश: व्यापार मार्गों को डॉटेड लाइन (—–>) द्वारा दर्शाएँ और वस्तुओं के नाम साथ लिखें।

📝 अंत में अभ्यास प्रश्न :-

  1. मुगल काल में सबसे उपजाऊ क्षेत्र कौन सा था और क्यों?

  2. ज़मींदारों की दो प्रमुख भूमिकाएँ क्या थीं?

  3. पट्टा और कबूलियत के बीच क्या अंतर है?

  4. टोडरमल की ‘दहसाला प्रणाली’ क्या थी?

  5. ज़ब्ती प्रणाली का क्या महत्व था?

वैकल्पिक प्रश्न (MCQs) - उत्तर और व्याख्या

1. मुगल काल में किसानों और राज्य के बीच संबंध को औपचारिक रूप से किस दस्तावेज़ से स्पष्ट किया गया था?


A) ज़ब्ती प्रणाली
B) पट्टा और कबूलियत
C) आइन-ए-अकबरी
D) पेशकश

सही उत्तर: B) पट्टा और कबूलियत

📝 व्याख्या: पट्टा वह दस्तावेज़ था जिसमें किसान को दी गई भूमि और उसके माप की जानकारी होती थी। कबूलियत वह लिखित अनुबंध था जिसमें किसान राज्य की कर वसूली की शर्तों को स्वीकार करता था। इससे राज्य और किसान के बीच कर संबंध स्पष्ट और रिकॉर्ड में दर्ज होते थे।

 2. मुगल काल की किस नीति में भूमि की उपज और उसकी औसत कीमत के आधार पर कर तय किया जाता था?


A) बटाई प्रणाली
B) ज़ब्ती प्रणाली
C) पेशकश प्रणाली
D) इक़्ता प्रणाली

सही उत्तर: B) ज़ब्ती प्रणाली

📝 व्याख्या: ज़ब्ती प्रणाली अकबर के शासनकाल में टोडरमल द्वारा लागू की गई थी, जिसमें भूमि की उपज और उसकी औसत कीमत के आधार पर कर तय किया जाता था। यह प्रणाली दहसाला के रूप में विकसित हुई, जो पिछले दस वर्षों की औसत उपज पर आधारित थी।

3. ‘आइन-ए-अकबरी’ ग्रंथ किसने लिखा और इसमें क्या वर्णित है?


A) फैज़ी – धार्मिक नीति
B) बीरबल – न्याय प्रणाली
C) अबुल फ़ज़ल – प्रशासन और कृषि व्यवस्था
D) टोडरमल – कर संग्रह प्रणाली

सही उत्तर: C) अबुल फ़ज़ल – प्रशासन और कृषि व्यवस्था

📝 व्याख्या: अबुल फ़ज़ल ने आइन-ए-अकबरी नामक ग्रंथ लिखा था जो अकबर के शासन का प्रशासनिक, आर्थिक, धार्मिक और कृषि से संबंधित विस्तृत वर्णन करता है। इसमें किसानों, ज़मींदारों, राजस्व प्रणाली आदि का गहराई से उल्लेख है।

 4. ‘बटाई प्रणाली’ का क्या अर्थ है?


A) किसानों से पूर्व निर्धारित कर लेना
B) भूमि की माप के अनुसार कर लेना
C) उपज का एक निश्चित भाग राज्य को देना
D) ज़मींदारों को उपहार देना

सही उत्तर: C) उपज का एक निश्चित भाग राज्य को देना

📝 व्याख्या: बटाई प्रणाली में किसान और राज्य (या ज़मींदार) के बीच उपज का विभाजन होता था। यह प्रणाली उपज आधारित थी और इसमें किसान उपज का एक हिस्सा सीधे राज्य को देता था।

 5. मुगल काल में ‘ज़मींदार’ का मुख्य कार्य क्या था?


A) खेती करना
B) सैनिक सेवा देना
C) कर संग्रह करना
D) धार्मिक प्रचार करना

सही उत्तर: C) कर संग्रह करना

📝 व्याख्या: ज़मींदार राज्य की ओर से कर संग्रह करने का कार्य करते थे। वे स्थानीय प्रभावशाली व्यक्ति होते थे जिनका ग्राम समुदाय पर नियंत्रण होता था। कई बार वे सैन्य सहायता भी प्रदान करते थे।

 6. टोडरमल द्वारा लागू की गई ‘दहसाला प्रणाली’ का मुख्य उद्देश्य क्या था?


A) ज़मींदारों को दंडित करना
B) किसानों को उपहार देना
C) कर संग्रह की स्थिरता लाना
D) धार्मिक कर वसूलना

सही उत्तर: C) कर संग्रह की स्थिरता लाना

📝 व्याख्या: दहसाला प्रणाली एक व्यवस्थित कर प्रणाली थी जो भूमि की पिछले दस वर्षों की उपज के औसत मूल्य के आधार पर कर निर्धारण करती थी। इससे किसानों पर कर का बोझ कम हुआ और राज्य को स्थिर राजस्व प्राप्त हुआ।

7. ‘इक़्ता प्रणाली’ किस कालखंड से संबंधित है और इसका स्वरूप क्या था?


A) मुगल काल – प्रशासनिक नियुक्ति
B) दिल्ली सल्तनत – सैन्य सेवा के बदले भूमि
C) ब्रिटिश काल – कर प्रणाली
D) मौर्य काल – व्यापार नीति

सही उत्तर: B) दिल्ली सल्तनत – सैन्य सेवा के बदले भूमि

📝 व्याख्या: इक़्ता प्रणाली दिल्ली सल्तनत की एक सामंती प्रणाली थी जिसमें सैनिक सेवा के बदले अधिकारियों को भूमि (इक़्ता) प्रदान की जाती थी। यह भूमि से कर वसूलकर वे अपनी सेना का संचालन करते थे।

 8. मुगल काल में ‘आमिन’ किसे कहते थे?


A) सैनिक अधिकारी
B) धार्मिक गुरु
C) कर निरीक्षक
D) किसान

सही उत्तर: C) कर निरीक्षक

📝 व्याख्या: ‘आमिन’ वह अधिकारी होता था जो भूमि की माप करता, उपज का मूल्यांकन करता और कर निर्धारण की निगरानी करता था। यह राजस्व प्रशासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

 9. मुगल काल में ‘ख़ालिसा’ भूमि किसके अंतर्गत आती थी?


A) ज़मींदार के अधिकार में
B) धार्मिक संस्थानों के अधीन
C) राज्य द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासित
D) किसानों की निजी संपत्ति

सही उत्तर: C) राज्य द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासित

📝 व्याख्या: ‘ख़ालिसा’ भूमि वे क्षेत्र होते थे जो सीधे राज्य के नियंत्रण में होते थे। इनसे प्राप्त कर सीधे सम्राट के खजाने में जाता था। इन पर कोई जागीरदार या ज़मींदार नहीं होता था।

 10. मुगल काल में ‘मंसबदारों’ को दी गई भूमि को क्या कहा जाता था?


A) पट्टा
B) ख़ालिसा
C) जागीर
D) रैयत

सही उत्तर: C) जागीर

📝 व्याख्या: मंसबदारों को वेतन के रूप में भूमि दी जाती थी जिसे जागीर कहा जाता था। वे इस भूमि से कर वसूलकर अपने सैनिकों और प्रशासन का संचालन करते थे। यह जागीर उनके पद और दर्जे पर निर्भर करती थी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (30 से 40 शब्दों में)

1. रैयत किसे कहते हैं?

उत्तर: मुगल काल में खेती करने वाले किसानों को रैयत कहा जाता था। वे भूमि जोतते थे और सरकार को निर्धारित कर (लगान) देते थे। रैयत कृषि व्यवस्था की मुख्य आधारशिला माने जाते थे।

2. ज़मींदार की क्या भूमिका थी?

उत्तर: ज़मींदार कर संग्रहकर्ता होते थे जो किसानों से कर वसूलते थे। वे क्षेत्रीय प्रशासन, न्याय व्यवस्था और शांति बनाए रखने में भी सहयोग करते थे। कई ज़मींदारों के पास अपनी निजी सेना भी होती थी।

3. ज़ब्ती प्रणाली क्या थी?

उत्तर: यह मुगल काल की प्रमुख राजस्व प्रणाली थी। इसमें भूमि का मापन कर उसकी उपज का आकलन किया जाता था और उसी आधार पर किसान से कर वसूला जाता था। इसे टोडरमल ने विकसित किया था।

4. ‘पट्टा’ और ‘कबूलियत’ क्या थे?

उत्तर: पट्टा वह दस्तावेज़ था जिसमें किसान को भूमि जोतने का अधिकार मिलता था। कबूलियत वह अनुबंध था जिसमें किसान कर देने की शर्तों को स्वीकार करता था। ये दोनों भूमि संबंधी अनुबंध थे।

5. दहसाला प्रणाली किसने शुरू की?

उत्तर: दहसाला प्रणाली अकबर के राजस्व मंत्री राजा टोडरमल ने शुरू की थी। इसमें दस वर्षों की औसत उपज और फसल के मूल्य के आधार पर वार्षिक कर निर्धारित किया जाता था। यह प्रणाली स्थायित्व प्रदान करती थी।

6. ‘आइन-ए-अकबरी’ किसने लिखा?

उत्तर: ‘आइन-ए-अकबरी’ प्रसिद्ध लेखक अबुल फज़ल ने अकबर के शासनकाल में लिखा था। इसमें शासन, प्रशासन, कर प्रणाली, कृषि, फसलें और ज़मींदारों की भूमिका का विस्तृत वर्णन मिलता है।

7. जागीर किसे कहते हैं?

उत्तर: जागीर वह भूमि होती थी जो मंसबदारों को वेतन के रूप में दी जाती थी। वे इस भूमि से कर वसूलकर प्रशासन और सैन्य व्यय का संचालन करते थे। यह एक प्रकार की अस्थायी संपत्ति होती थी।

8. रबी और खरीफ फसलों में क्या अंतर है?

उत्तर: रबी फसलें सर्दियों में बोई जाती हैं जैसे गेहूं, चना, जबकि खरीफ फसलें वर्षा ऋतु में जैसे धान, मक्का। इनकी बुवाई और कटाई का समय भिन्न होता है और जलवायु पर निर्भर करता है।

9. मुगल काल में आमिन कौन था?

उत्तर: आमिन एक राजस्व अधिकारी होता था जो भूमि की माप, फसल के उत्पादन का आकलन और कर निर्धारण की प्रक्रिया को नियंत्रित करता था। वह प्रशासन और किसानों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाता था।

10. जिन्स-ए-कामिल से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: जिन्स-ए-कामिल उन प्रमुख और उच्च गुणवत्ता वाली फसलों को कहा जाता था जिनका उत्पादन अधिक मात्रा में होता था। जैसे गेहूं, धान, गन्ना आदि। कर निर्धारण इन्हीं फसलों के आधार पर होता था।

लघु उत्तरीय प्रश्न (60 से 80 शब्दों में)

1. मुगल काल में किसान की सामाजिक और आर्थिक स्थिति कैसी थी?

उत्तर: मुगल काल में किसान भूमि जोतकर खेती करता था और राज्य को कर (लगान) अदा करता था। उसे ‘रैयत’ कहा जाता था। किसान की स्थिति कठिन थी क्योंकि वह प्राकृतिक आपदाओं, युद्ध, कर वसूली और ज़मींदारों के अत्याचारों से प्रभावित होता था। फिर भी, वह कृषि व्यवस्था की रीढ़ था और राज्य की आमदनी का मुख्य स्रोत भी।

2. ज़मींदारों की भूमिका क्या थी और वे कैसे कर वसूलते थे?

उत्तर: ज़मींदार ग्रामीण समाज में शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति होते थे। वे किसानों से कर वसूलते और राज्य को एक निश्चित हिस्सा देते थे। इसके बदले उन्हें जागीर मिलती थी। वे प्रशासन, न्याय व्यवस्था और स्थानीय सुरक्षा में भी भूमिका निभाते थे। कभी-कभी वे किसानों पर अत्याचार करते थे और अपने हित में कर वसूलते थे।

3. पट्टा और कबूलियत दस्तावेजों का क्या महत्व था?

उत्तर: ‘पट्टा’ वह दस्तावेज़ था जिसमें किसान को दी गई भूमि और उस पर लगने वाला कर दर्ज होता था। ‘कबूलियत’ किसान द्वारा दी गई लिखित सहमति थी, जिसमें वह कर की शर्तों को स्वीकार करता था। इन दोनों दस्तावेजों ने भूमि और कर संबंधों को स्पष्ट, नियमित और राज्य के नियंत्रण में रखने में मदद की।

4. टोडरमल द्वारा किए गए राजस्व सुधारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: अकबर के वित्त मंत्री राजा टोडरमल ने दहसाला प्रणाली लागू की। इसमें भूमि का मापन किया जाता था और पिछले दस वर्षों की औसत उपज और मूल्य के आधार पर कर निर्धारित किया जाता था। इससे कर व्यवस्था नियमित और पारदर्शी बनी। उन्होंने पट्टा और कबूलियत जैसे दस्तावेजों को भी शुरू किया जिससे किसानों और राज्य के बीच समझौता स्पष्ट हुआ।

5. आइन-ए-अकबरी में कृषि और कर व्यवस्था का किस प्रकार वर्णन किया गया है?

उत्तर: अबुल फ़ज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ में अकबर कालीन कृषि व्यवस्था, राजस्व प्रणाली, फसलें, भूमि की उपज, ज़मींदारों की भूमिका और कर वसूली की प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें दहसाला प्रणाली, पट्टा-कबूलियत और ज़ब्ती प्रणाली को भी समझाया गया है। यह ग्रंथ उस युग के प्रशासन और आर्थिक ढांचे को जानने का महत्वपूर्ण स्रोत है।

6. दहसाला प्रणाली क्या थी और इसके क्या लाभ थे?

उत्तर: दहसाला प्रणाली अकबर के समय राजा टोडरमल द्वारा विकसित की गई थी। इसमें पिछले दस वर्षों की फसल उपज और बाज़ार मूल्य का औसत निकालकर उस पर कर निर्धारित किया जाता था। यह प्रणाली स्थिर, व्यवस्थित और किसानों के लिए अपेक्षाकृत सरल थी। इससे राज्य को निश्चित आय मिलती थी और किसानों को कर में पारदर्शिता मिलती थी।

7. जागीरदारी प्रथा का मुगल प्रशासन में क्या महत्व था?

उत्तर: जागीरदारी प्रथा के तहत मुगल शासक मंसबदारों को वेतन के रूप में भूमि (जागीर) प्रदान करते थे। मंसबदार उस भूमि से कर वसूलते थे और बदले में सैनिक व प्रशासनिक सेवाएं प्रदान करते थे। यह प्रणाली प्रशासन को सुचारू चलाने में सहायक थी, लेकिन धीरे-धीरे इससे भ्रष्टाचार और शोषण भी बढ़ा।

8. कृषक विद्रोहों के क्या कारण थे?

उत्तर: कृषक विद्रोहों के प्रमुख कारण अधिक कर वसूली, ज़मींदारों और जागीरदारों का अत्याचार, प्राकृतिक आपदाओं से फसल की बर्बादी, और शासन की उपेक्षा थे। किसानों को कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती थी। जब उत्पीड़न अत्यधिक बढ़ जाता था, तब वे संगठित होकर विरोध या विद्रोह करते थे।

9. आमिन की भूमिका क्या थी?

उत्तर: आमिन मुगल राजस्व विभाग का एक अधिकारी होता था। वह भूमि की माप, फसल की उपज का मूल्यांकन, और कर निर्धारण की प्रक्रिया की निगरानी करता था। उसका कार्य यह सुनिश्चित करना था कि कर निष्पक्ष रूप से और सही तरीके से लगाया जाए। वह राज्य और किसानों के बीच सेतु की तरह कार्य करता था।

10. मुगल काल में जिन्स-ए-कामिल फसलें क्यों महत्वपूर्ण थीं?

उत्तर: जिन्स-ए-कामिल वे प्रमुख फसलें थीं जिनकी उपज स्थायी, गुणवत्तायुक्त और बाज़ार में मांग वाली होती थी, जैसे गेहूं, धान, चना आदि। इन्हीं फसलों के आधार पर कर निर्धारण किया जाता था क्योंकि इनका मूल्य अपेक्षाकृत स्थिर होता था। ये राज्य की आय का मुख्य स्रोत थीं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (140 से 180 शब्दों में)

प्रश्न 1. मुगल काल की ज़ब्ती प्रणाली क्या थी? इसका कृषकों पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर: ज़ब्ती प्रणाली मुगल शासन के दौरान भूमि राजस्व संग्रह की एक संगठित प्रणाली थी, जिसे टोडरमल ने अकबर के शासनकाल में लागू किया था। इसमें प्रत्येक खेत की माप ली जाती थी और वहाँ होने वाली उपज का औसत मूल्य निर्धारित कर उसके आधार पर कर लगाया जाता था।
इस प्रणाली के अंतर्गत भूमि का सही-सही सर्वेक्षण किया जाता था और किसान को एक पट्टा (भूमि स्वीकृति पत्र) दिया जाता था जिसमें उसकी ज़मीन, उपज और कर की जानकारी रहती थी। किसान से क़बूलियत ली जाती थी जिसमें वह राज्य की शर्तों को स्वीकार करता था।
इससे कर वसूली पारदर्शी और व्यवस्थित हुई, परंतु कभी-कभी जब फसल खराब होती थी और कर में छूट नहीं मिलती थी, तब किसान कठिनाई में पड़ते थे। फिर भी यह प्रणाली अन्य व्यवस्थाओं की तुलना में अधिक न्यायसंगत मानी जाती थी और राज्य को स्थिर राजस्व मिलता था।

प्रश्न 2. ज़मींदारों की भूमिका मुगल प्रशासन में क्या थी? वे किसानों के साथ कैसे संबंध रखते थे?

उत्तर: मुगल प्रशासन में ज़मींदार महत्वपूर्ण कड़ी थे। वे भूमि के मालिक नहीं होते थे लेकिन राज्य के प्रतिनिधि के रूप में कर संग्रह करने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने का काम करते थे। ज़मींदार अपने क्षेत्र के प्रशासन में भी भूमिका निभाते थे और अक्सर स्थानीय रूप से प्रभावशाली जातियों से होते थे जैसे राजपूत, भूमिहार, पठान, शेख आदि।
वे किसानों से कर वसूलते और एक निश्चित हिस्सा राज्य को देते थे। कुछ ज़मींदार किसानों के साथ न्यायसंगत व्यवहार करते थे, जबकि कई ज़मींदार अधिक कर वसूलते और शोषण करते थे, जिससे किसान विद्रोह भी होते थे।
ज़मींदारों का कद कभी-कभी इतना बढ़ जाता था कि वे स्थानीय सत्ता बन जाते थे और राज्य के लिए चुनौती भी बनने लगते थे। फिर भी, उनके बिना कृषि आधारित राजस्व तंत्र चलाना कठिन था, इसलिए वे प्रशासन का आवश्यक अंग बने रहे।

प्रश्न 3. अकबर के शासनकाल में कृषि व्यवस्था को सुधारने के क्या प्रयास किए गए?

उत्तर: अकबर के शासनकाल में कृषि और राजस्व व्यवस्था में अनेक सुधार किए गए। उन्होंने भूमि माप की प्रणाली को सुदृढ़ किया और कर निर्धारण के लिए दहसाला प्रणाली अपनाई। इसके तहत पिछले 10 वर्षों की उपज और मूल्य का औसत निकालकर कर तय किया जाता था।
राजस्व मंत्री टोडरमल ने ज़ब्ती प्रणाली विकसित की, जिसमें भूमि की माप, उपज का मूल्यांकन और कर संग्रह के लिए एक व्यवस्थित प्रणाली बनी। किसानों को पट्टा दिया जाता था, जिससे उन्हें भूमि पर अधिकार मिलता था। साथ ही, उनसे कबूलियत ली जाती थी जिसमें वे कर देने की शर्तें स्वीकार करते थे।
इन सुधारों से किसानों को सुरक्षा मिली, राजस्व संग्रह व्यवस्थित हुआ और राज्य को स्थिर आय प्राप्त होने लगी। इसके बावजूद, कभी-कभी सूखा या फसल की बर्बादी होने पर किसान कठिनाई में पड़ते थे। फिर भी, यह व्यवस्था तत्कालीन काल में सबसे व्यावहारिक और प्रभावी मानी जाती थी।

प्रश्न 4. आइन-ए-अकबरी ग्रंथ क्या है? इसमें कृषि और कर व्यवस्था के बारे में क्या जानकारी मिलती है?

उत्तर: आइन-ए-अकबरी अबुल फ़ज़ल द्वारा रचित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ है, जो अकबरनामा का तीसरा भाग है। यह अकबर के शासनकाल में प्रशासनिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है। इसमें विशेष रूप से कृषि, ज़मींदारी व्यवस्था और कर प्रणाली पर महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
इस ग्रंथ में मुगल साम्राज्य के विभिन्न सूबों की भूमि, फसलें, राजस्व संग्रह की मात्रा, ज़मींदारों की स्थिति, किसानों की दशा, व व्यापार की जानकारी दी गई है। यह दस्तावेज़ उस समय के कृषि उत्पादन, उपज की दरें, रबी और खरीफ फसलों की सूची तथा फसलों के मूल्य जैसी जानकारियाँ भी प्रदान करता है।
आइन-ए-अकबरी के माध्यम से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस प्रकार अकबर के शासन में प्रशासनिक कार्यों को दस्तावेज़बद्ध कर व्यवस्थित किया गया और राज्य की राजस्व नीति कितनी विस्तृत और सुसंगठित थी।

प्रश्न 5. मुगल काल में कृषक और राज्य के बीच क्या संबंध थे? कर वसूली प्रक्रिया का इसमें क्या स्थान था?

उत्तर: मुगल काल में कृषक (रैयत) और राज्य के बीच संबंध कर वसूली और भूमि अधिकारों पर आधारित था। कृषक भूमि जोतते थे और राज्य को उपज का एक निश्चित हिस्सा कर के रूप में देते थे। यह कर नकद या फसल के रूप में हो सकता था।
राज्य की ओर से कर वसूली की प्रक्रिया को व्यवस्थित बनाने के लिए टोडरमल द्वारा ज़ब्ती प्रणाली लागू की गई थी। इसके अंतर्गत भूमि की माप होती थी और किसान को पट्टा दिया जाता था जिसमें भूमि और कर की जानकारी होती थी। किसान से कबूलियत ली जाती थी जिसमें वह कर देने की शर्तें स्वीकार करता था।
ज़मींदार राज्य के लिए कर एकत्र करने का कार्य करते थे, जो कृषकों से कर वसूलते थे। यद्यपि व्यवस्था अधिकतर व्यवस्थित थी, परंतु प्राकृतिक आपदाओं या फसल खराबी की स्थिति में कर देना किसानों के लिए कठिन हो जाता था। फिर भी, यह संबंध प्रशासनिक रूप से राज्य और समाज को जोड़ता था और आर्थिक स्थिरता बनाए रखता था।

रिवीजन शीट (Revision Sheet)

📌 मुख्य अवधारणाएँ :-

  • रैयत (किसान): जो भूमि जोतकर खेती करता है।

  • ज़मींदार: राज्य की ओर से कर वसूलने वाला व्यक्ति।

  • राजस्व प्रणाली: फसल, भूमि और उपज के अनुसार कर लिया जाता था।

  • ज़ब्ती प्रणाली: टोडरमल द्वारा विकसित भूमि मापन और कर निर्धारण प्रणाली।

  • पट्टा और कबूलियत: भूमि स्वीकृति और शर्तों का दस्तावेज़ीकरण।

  • आइन-ए-अकबरी: अबुल फ़ज़ल द्वारा लिखा गया अकबरकालीन प्रशासनिक ग्रंथ।

🧮 प्रमुख शब्दार्थ (संक्षेप में) :-

  • जागीर: कर के बदले दी गई भूमि।

  • इक़्ता: सैन्य सेवा के बदले दी जाने वाली भूमि।

  • आमिन: कर निरीक्षक।

  • बटाई: उपज का बाँटकर कर देना।

  • जिन्स-ए-कामिल: श्रेष्ठ फसलें (जैसे गेहूं, चावल)।

🗓️ मुख्य तिथियाँ :-

  • 1526: बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापना।

  • 1570: टोडरमल द्वारा कर सुधारों की योजना।

  • 1580: दहसाला प्रणाली लागू।

  • 1599–1602: आइन-ए-अकबरी की रचना।

📊 कर वसूली की विधियाँ :-

  • बटाई प्रणाली: उपज का हिस्सा लिया जाता।

  • कश्त आधारित वसूली: भूमि माप और फसल की दर से।

  • नकद कर प्रणाली: मूल्य के आधार पर नकद कर वसूली।

👨‍🌾 रैयत और ज़मींदार संबंध :-

  • ज़मींदार कर संग्रहकर्ता के रूप में कार्य करते थे।

  • किसान अक्सर बोझ तले दबे रहते, विद्रोह भी होते थे।

  • अच्छे ज़मींदार किसानों को सहारा भी देते थे।

📚 महत्वपूर्ण ग्रंथ :-

  • आइन-ए-अकबरी: कृषि, कर, प्रशासन व समाज का विस्तृत वर्णन।

🧭 नक्शे में पहचानें :-

  • मुगल साम्राज्य के प्रमुख कृषि क्षेत्र: पंजाब, गंगा घाटी, दक्कन।

  • ज़ब्ती प्रणाली के क्षेत्र: आगरा, लाहौर, अजमेर आदि।

वर्कशीट (Worksheet) - Test (किसान, ज़मींदार और राज्य — मुगल साम्राज्य )

1. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए :-

(Write the meanings of the following words)

a) रैयत
b) ज़मींदार
c) जागीर
d) बटाई
e) ज़ब्ती प्रणाली

2. सही उत्तर चुनिए :-

(Choose the correct answer)

  1. मुगल काल में ज़ब्ती प्रणाली को किसने विकसित किया था?
    a) अबुल फ़ज़ल
    b) अकबर
    c) टोडरमल
    d) जहाँगीर

  2. ‘पट्टा’ शब्द का अर्थ है:
    a) कर वसूली
    b) भूमि स्वीकृति पत्र
    c) सेना की नियुक्ति
    d) फसल का नाम

  3. ‘कबूलियत’ किसके द्वारा दी जाती थी?
    a) ज़मींदार
    b) किसान
    c) आमिन
    d) राजा

3. अति लघु उत्तर प्रश्न (20-30 शब्दों में उत्तर दीजिए) :-

(Answer in 20-30 words)

a) ज़ब्ती प्रणाली क्या थी?
b) किसान और ज़मींदार के संबंध कैसे थे?
c) दहसाला प्रणाली में कर कैसे तय होता था?

4. लघु उत्तरीय प्रश्न (40-60 शब्दों में उत्तर दीजिए) :-

(Answer in 40-60 words)

a) ‘आइन-ए-अकबरी’ का महत्त्व बताइए।
b) टोडरमल द्वारा किए गए राजस्व सुधारों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
c) ‘पट्टा’ और ‘कबूलियत’ प्रणाली का मकसद क्या था?

5. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (120-150 शब्दों में उत्तर दीजिए) :-

(Answer in 120-150 words)

a) मुगल काल में ज़मींदारी व्यवस्था का वर्णन कीजिए और किसान-ज़मींदार संबंधों पर इसका प्रभाव बताइए।
b) शेरशाह सूरी और अकबर के राजस्व सुधारों में क्या समानताएँ और अंतर थे?
c) ज़ब्ती प्रणाली क्या थी? इसके लाभ और समस्याओं पर विस्तार से चर्चा करें।

6. समय रेखा (Timeline) बनाइए :-

(Create a timeline for the following घटनाएँ)

  • बाबर द्वारा मुगल साम्राज्य की स्थापना

  • शेरशाह सूरी का शासन

  • टोडरमल द्वारा ज़ब्ती प्रणाली की शुरुआत

  • ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना

7. संक्षिप्त निबंध (100-120 शब्दों में लिखिए) :-

(Write a short essay in 100-120 words)

“मुगल काल में कृषक जीवन और कृषि व्यवस्था”

8. नक्शा पहचानिए (Map Work) :-

(Identify the following places on the map of Mughal India)

  • पंजाब

  • गंगा घाटी

  • दक्कन

  • अजमेर

आपकी राय क्या है?

क्या आप भी मानते हैं कि कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं होता?
क्या आपने भी कभी अपनी गलतियों से कुछ सीखा है जो आपको और मजबूत बना गया?

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