पाषाण युग की 5 हैरान करने वाली बातें जो आपका नज़रिया बदल देंगी
5 surprising facts about the Stone Age that will change your perspective
अगली बार जब आप ट्रेन की खिड़की से तेज़ी से गुज़रते खेतों को देखें, तो एक पल के लिए सोचिए…। कुछ घंटों में हम सैकड़ों किलोमीटर दूर पहुँच जाते हैं। लेकिन हमारे उन प्राचीन पूर्वजों का क्या, जिनके पास तेज़ रफ़्तार वाली सवारियाँ नहीं थीं? क्या वे सिर्फ़ बिना लक्ष्य के भटकते थे, या उनकी यात्राओं के पीछे कोई गहरी रणनीति थी? जो तथ्य हम जानते हैं, वे शायद आपको आश्चर्यचकित कर दें।
1. वे भटक नहीं रहे थे, वे अपने पर्यावरण के विशेषज्ञ थे...

यह सोचना आम है कि आरंभिक मानव बिना किसी लक्ष्य के इधर-उधर घूमते थे, लेकिन सच इससे कहीं ज़्यादा प्रभावशाली है। उनकी गतिशीलता एक सोची-समझी उत्तरजीविता रणनीति थी। यह कोई अंधाधुंध भटकाव नहीं था, बल्कि प्रकृति के कैलेंडर को पढ़ने और उसके चक्र के साथ तालमेल बिठाने की विशेषज्ञता थी।
पुरातत्वविदों के अनुसार, उनके घूमने के कई ठोस कारण थे :-
• संसाधनों का प्रबंधन :- अगर वे एक ही जगह पर ज़्यादा दिनों तक रहते, तो आस-पास के पौधों, फलों और जानवरों को खाकर समाप्त कर देते। इसलिए, भोजन की निरंतरता बनाए रखने के लिए उन्हें दूसरी जगहों पर जाना पड़ता था।
• शिकार का अनुसरण :- हिरण और मवेशी जैसे जानवर चारे की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते थे। कुशल शिकारी होने के नाते, हमारे पूर्वज इन झुंडों के पीछे-पीछे जाया करते थे।
• मौसम के अनुसार यात्रा :- वे जानते थे कि किस मौसम में किन पेड़ों पर फल लगेंगे। इसलिए, लोग उनकी तलाश में उपयुक्त मौसम के अनुसार अन्य इलाकों में घूमते थे – यह प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध का प्रमाण है।
• पानी की खोज :- पानी जीवन का स्रोत है। कुछ झीलें और नदियाँ बारिश के बाद ही भरती थीं, इसलिए सूखे मौसम में पानी की तलाश में लोगों को यात्रा करनी पड़ती थी।
• सामाजिक जुड़ाव :- सबसे महत्वपूर्ण बात, वे सिर्फ़ भोजन और पानी के लिए नहीं घूमते थे। लोग अपने नाते-रिश्तेदारों और मित्रों से मिलने के लिए भी यात्रा करते थे। यह हमें याद दिलाता है कि वे केवल उत्तरजीवी नहीं, बल्कि सामाजिक प्राणी भी थे।
2. मानव इतिहास का 99% हिस्सा एक ही युग में बीता था...

हम अपने इतिहास को शहरों, साम्राज्यों और किताबों से मापते हैं। लेकिन क्या होगा अगर मैं आपसे कहूँ कि यह सब कुछ मानव कहानी के केवल एक प्रतिशत हिस्से में सिमटा हुआ है?
पुरातत्वविदों ने मानव इतिहास के सबसे आरंभिक और लंबे काल को पुरापाषाण काल का नाम दिया है। यह नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – पुरा यानी प्राचीन, और पाषाण यानी पत्थर, जो उस काल में पत्थर के औज़ारों के महत्व को बताता है। इस युग की विशालता को समझना मुश्किल है, क्योंकि यह बीस लाख साल पहले से शुरू होकर लगभग 12,000 साल पहले तक चला। इस तथ्य को परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, यह कथन देखें :-
मानव इतिहास की लगभग 99 प्रतिशत कहानी इसी काल के दौरान घटित हुई।
यह हमें सिखाता और याद दिलाता है कि हमारा तथाकथित आधुनिक जीवन, जिसमें कृषि, शहर और तकनीक शामिल हैं, मानव अनुभव के विशाल सागर में एक छोटी सी बूँद मात्र है।
3. पत्थर के औज़ार बनाने के लिए उनकी अपनी " फ़ैक्टरियाँ " थीं...

पाषाण युग के लोग केवल प्रकृति से मिली चीज़ों पर निर्भर नहीं थे; वे कुशल निर्माता और इंजीनियर भी थे। पुरातत्वविदों ने उन स्थानों की खोज की है जिन्हें वे उद्योग-स्थल कहते हैं। ये वे स्थान थे जहाँ लोग विशेष रूप से पत्थर के औज़ार बनाने के लिए इकट्ठा होते थे।
हमें इन स्थलों के बारे में कई तरह के सबूतों से पता चलता है :-
• यहाँ पत्थर के बड़े-बड़े टुकड़े मिलते हैं।
• ऐसे उपकरण मिलते हैं जिन्हें शायद इसलिए छोड़ दिया गया क्योंकि वे ठीक से नहीं बने थे।
• औज़ार बनाने की प्रक्रिया में पत्थरों के टूटे-फूटे और बेकार टुकड़े भी यहाँ बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं।
कभी-कभी लोग इन स्थलों पर लंबे समय तक रहते भी थे। ऐसे स्थानों को आवासीय और उद्योग-स्थल कहा जाता था। इसका एक बेहतरीन उदाहरण मध्य प्रदेश में भीमबेटका जैसी जगहें हैं, जो एक आवासीय पुरास्थल है, यानी लोग इन गुफाओं में बारिश, धूप और हवाओं से बचने के लिए रहते थे। ऐसे स्थल जहाँ लोग लंबे समय तक निवास करते थे, वे अक्सर औज़ार बनाने के केंद्र भी बन जाते थे, जो एक संगठित और उद्देश्यपूर्ण जीवनशैली को इंगित करता है।
4. वे सिर्फ़ जीवित नहीं रह रहे थे, वे कलाकार भी थे...

अस्तित्व के लिए दैनिक संघर्ष के बावजूद, हमारे पूर्वजों में कला और अभिव्यक्ति की गहरी मानवीय इच्छा थी। इसका सबसे सुंदर प्रमाण शैल चित्रकला है। जिन गुफाओं में आरंभिक मानव रहते थे, उनमें से कई की दीवारों पर अद्भुत चित्र मिले हैं, जैसे मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश की गुफाओं में पाए गए चित्र।
इन चित्रों में जंगली जानवरों का बड़ी कुशलता से सजीव चित्रण किया गया है। यह कला हमें बताती है कि हज़ारों साल पहले भी, इंसान सिर्फ़ पेट भरने के लिए नहीं जीता था। वे अपने आस-पास की दुनिया को समझना, उसकी सुंदरता को कैद करना और अपनी कहानियों को आने वाली पीढ़ियों के लिए पत्थरों पर अमर करना चाहते थे।
5. सबसे अनोखी बात - प्राचीन भारत में शुतुरमुर्ग घूमते थे...

यह एक ऐसा तथ्य है जो भारत के प्रागैतिहासिक परिदृश्य के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल देता है। पुरापाषाण युग के दौरान भारत में शुतुरमुर्ग मौजूद थे। यह केवल एक अनुमान नहीं है, बल्कि इसके ठोस पुरातात्विक प्रमाण हैं :-
• महाराष्ट्र के पटने नामक पुरास्थल से शुतुरमुर्ग के अंडों के अवशेष मिले हैं।
• इन अंडों के कुछ छिलकों पर चित्रांकन भी मिलता है।
• सबसे दिलचस्प बात यह है कि इन अंडों के छिलकों से मनके (beads) भी बनाए जाते थे।
यह खोज न केवल हमें उस दुनिया की एक झलक देती है जो आज से बहुत अलग थी, बल्कि यह भी दिखाती है कि हमारे पूर्वज अपने परिवेश में उपलब्ध हर संसाधन का रचनात्मक उपयोग करने में कितने माहिर थे।
अंत में जानते हैं ?
ये तथ्य मिलकर एक स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं कि पाषाण युग के मानव सरल या आदिम नहीं थे। वे अपने पर्यावरण के विशेषज्ञ, कुशल कारीगर और भावुक कलाकार थे। उनकी फ़ैक्टरियाँ उनकी सरलता को दर्शाती हैं, और शुतुरमुर्ग के अंडे से बने मनके बताते हैं कि वे सिर्फ़ जीवित नहीं रहना चाहते थे, बल्कि अपने जीवन को सजाना भी चाहते थे। उन्होंने उस मानवता की नींव रखी जिसे हम आज आगे बढ़ा रहे हैं।
हमारे पूर्वजों के कौशल और रचनात्मकता को देखते हुए, क्या आप सोचते हैं कि आधुनिक जीवन में हमने कौन सी आवश्यक मानवीय क्षमता खो दी है?